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लक्ष्य : हार और जीत ही काफी नहीं जिंदगी में…

हार और जीत ही काफी नहीं
जिंदगी में मेरे लिए
मीलों दूर जाना है अभी मुझे।
निराशा के साथ बंधी
आशा की इक डोर थामे
उन्नत शिखर की चोटी पर चढ़ जाना है मुझे।
हार और जीत ही….

है अंधेरा घना लेकिन
इक दिया तो जलता है रोशनी के लिए
उसी रोशनी का सहारा लिए
भेदकर घोर तमस का सीना
उस दिये का हाथ बंटाना है मुझे।
हार और जीत ही…

चांद पर पहुंच पाऊंगा या नहीं
ये सोच अभी नहीं रुकना है मुझे
चलता रहा विजय की उम्मीद लिए
तो चांद पर न सही
तारों के बीच टिमटिमाना है मुझे।
हार और जीत ही…

– लोकेन्द्र सिंह
(काव्य संग्रह “मैं भारत हूँ” से) 

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